
जीवनी

रामनिवास मीना की जीवनी लचीलेपन, दृढ़ संकल्प और सार्वजनिक सेवा के प्रति गहरी प्रतिबद्धता में से एक है। 1958 में खेती और शिक्षा से जुड़े मजबूत परिवार में जन्मे मीना ने कम उम्र से ही कड़ी मेहनत और सीखने के मूल्यों को आत्मसात कर लिया। इनकी शैक्षणिक यात्रा गाँव के एक छोटे से सरकारी स्कूल से शुरू हुई, जहाँ शैक्षणिक उत्कृष्टता और त्वरित बुद्धि ने इन्हें शिक्षकों साथियों के बीच प्रिय छात्र के रूप में पहचान दिलाई भूगोल, इतिहास और अर्थशास्त्र में अपनी उच्च शिक्षा पूरी करने के बाद, मीना ने सीखने और विकास के लिए बहुमुखी दृष्टिकोण प्रदर्शित किया।
जीवन यात्रा

रामनिवास मीना का जन्म वर्ष 1958 में 19 सितंबर, बुधवार को हुआ था। अहिंसा नगरी के रूप में देश भर में प्रसिद्ध अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी से महज 7 किलोमीटर और भक्त प्रहलाद की जन्मस्थली के साथ पत्थर नगरी के रूप में प्रसिद्ध हिण्डौन शहर से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गांव बझेडा में किसान परिवार में जन्मे रामनिवास मीना के पिताजी श्री गिर्राज प्रसाद मीना सरकारी शिक्षक थे। वे आमजन के बीच मास्टरजी के रूप में प्रसिद्ध थे।
पिताजी शिक्षक और माताजी किसान परिवार की कुशल गृहणी होने के कारण रामनिवास मीना को प्रारंभ से ही शिक्षा के साथ खेती-किसानी के पारिवारिक संस्कार मिले। रामनिवास मीना जब 6 साल के थे, तब विद्यालय जाने लगे। पहली से तीसरी तक की पढाई उन्होंने बझेडा गांव के ही राजकीय प्राथमिक विद्यालय में पूरी की।

रामनिवास मीना जब चौथी कक्षा में पहुंचे तो उस वक्त शिक्षक होने के नाते पिताजी पास के गांव टोडूपुरा के राजकीय प्राथमिक विद्यालय में पदस्थापित थे। ऐसे में रामनिवास मीना का दाखिला बझेडा के राजकीय प्राथमिक विद्यालय से चौथी कक्षा में टोडूपुरा के राजकीय प्राथमिक विद्यालय में ही कर दिया गया। गांव बझेडा से महज तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित टोडूपुरा गांव के राजकीय प्राथमिक विद्यालय में अपने पिताजी के सानिंध्य में रहकर रामनिवास मीना ने कक्षा चार और पांच उत्तीर्ण की।

उस वक्त टोडूपुरा गांव में पांचवी तक ही सरकारी विद्यालय था। आगे की पढाई के लिए रामनिवास मीना ने काचरौली गांव के राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय में प्रवेश लिया। कक्षा 6, 7 और 8 तक की पढाई काचरौली गांव के ही विद्यालय में पूरी की। गांव बझेडा से कभी साइकिल से तो कभी सहपाठियों के साथ पांच किलोमीटर पैदल चलकर विद्यालय पहुंचने वाले रामनिवास मीना की शिक्षकों के बीच होनहार स्टूडेंट के रूप में पहचान थी। उस वक्त विद्यालय में खेडा गांव निवासी शिक्षक श्री रामेश्वर प्रसाद शर्मा हिन्दी विषय और हिण्डौन निवासी शिक्षक श्री सरवर हुसैन विज्ञान पढाते थे। सवालों के सरपट उत्तर देने के कारण शिक्षकों के बीच रामनिवास लाडले विद्यार्थी के रूप में जाने जाते थे।

रामनिवास मीना ने माध्यमिक दर्जे की पढाई हिण्डौन के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में पूरी की। वर्ष 1972 में नवीं कक्षा में प्रवेश लिया और दसवीं व ग्यारहवीं बोर्ड भी इसी विद्यालय से उत्तीर्ण किया। बोर्ड में हिन्दी, संस्कृत और भूगोल विषय थे। उस वक्त संस्कृत विषय श्री चंद्रशेखर औदिच्य पढाते थे। रामनिवास मीना जब भी संस्कृत के सवालों में उलझते तो प्रिय शिक्षक होने के नाते श्री औदिच्य बडे प्यार से उन सवालों को हल कराते। रामनिवास मीना ने उस वक्त बोर्ड परीक्षा अच्छे अंकों के साथ उत्तीर्ण की।

बोर्ड की पढाई पूरी करने के बाद रामनिवास मीना ने बी.ए. की पढाई के लिए वर्ष 1975 में करौली के राजकीय महाविद्यालय में प्रवेश लिया। विषय थे- अर्थशास्त्र, भूगोल और इतिहास। रामनिवास मीना की प्रारंभ से ही इतिहास और भूगोल को जानने में विशेष रूचि थी। इसी कारण उन्होंने अर्थशास्त्र के साथ भूगोल और इतिहास को चुना। काॅलेज में पढाई के दौरान रामनिवास मीना युवा भारतीयों को सशस्त्र बलों में शामिल करने और प्रेरित करने वाली संस्था राष्ट्रीय कैडेट कोर (एनसीसी) के प्रति भी विशेष रूचि लेने लगे तथा राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) नौसेना व वायु सेना विंग में प्रवेश के लिए होने वाली परीक्षा के लिए विशेष सहायक एनसीसी का उच्चस्तीय "सी" लेवल प्रमाण पत्र प्राप्त किया।

रामनिवास मीना जब कक्षा 9 की पढाई कर रहे थे, तभी वर्ष 1972 में उनकी शादी हो गई। शादी के चार साल बाद वर्ष 1976 में गौना हुआ और उनके घर लक्ष्मी के रूप में टोडाभीम के डौरका गांव निवासी प्रेमलता जी का आगमन हुआ। मौजूदा दिनों में रामनिवास मीना के परिवार में धर्मपत्नी प्रेमलता जी के साथ पुत्र एडवोकेट रविन्द्र मीना (B.E., L.L.B.), पुत्रवधु अंजलि,(R.J.S.), पौत्री और पौत्र हैं।

काॅलेज की पढाई पूरी करने के बाद रामनिवास मीना ने एम.ए. की पढाई की। एम.ए. में विषय रहा- भारत का आधुनिक इतिहास। एम.ए. की डिग्री हांसिल करने के बाद रामनिवास मीना जयपुर के आई.ए.एस. कोचिंग इंस्टीटयूट में अध्ययन करने लगे।

जयपुर के आई.ए.एस. कोचिंग इंस्टीटयूट में अध्ययन केकुछ ही दिनों बाद रामनिवास मीना वर्ष 1980 में सरकारी सेवा में पदस्थापित हो गए। आज जब युवा वर्ग सरकारी नौकरियों की ओर दौड रहा है, लेकिन रामनिवास मीना ने उस वक्त इस होड के विपरीत दिशा में चलते हुए महज 6 साल में ही 1986 में सरकारी नौकरी से मोह छोड दिया और रियलस्टेट कारोबार से जुड गए। यहीं रामनिवास मीना के जीवन में समाजसेवा के भाव जागृत हुए।
मीना कहते हैं कि- जब वे 1980 में सरकारी सेवा से जुडे तो उनके पास जयपुर में रहने के लिए स्वयं का घर नहीं था। ऐसे में वे अपने परिवार के साथ किराए के कमरे में रहने लगे। इसी दौरान बडी संख्या में उन्हें जयपुर में ऐसे लोग मिले, जो अपनी छत के अभाव में बडी दुविधा में रहने को मजबूर थे। बिना घर के परेशानी में जूझ रहे लोगों को देखकर रामनिवास मीना ने तय किया कि वे सरकारी सेवा की घुटन में जीने के बजाय लोगों को घर देने की खुशियां प्रदान करने के कार्य में जुटेंगे।

1986 में सरकारी सेवा से मुक्त होने के बाद रामनिवास मीना ने न केवल स्वयं के परिवार के लिए जयपुर में घर बनाया, बल्कि अभी तक 7 हजार से ज्यादा लोगों को जीवन की सबसे बडी खुशी के रूप में घर उपलब्ध कराने का बेहतरीन कार्य किया है।

रियलस्टेट कारोबार के माध्यम से दूसरों को खुशियां देने में अपनी खुशी मानने वाले रामनिवास मीना वर्ष 2016-17 में माइनिंग के कारोबार से भी जुड गए। माइनिंग कारोबार में जब आसपास के देहाती लोगों को मूलभूत आवश्यकताओ के लिए जूझते हुए देखा तो रामनिवास मीना ने दोनों हाथों से जरूरतमंदों की सहायता की। यहीं कारण है कि उन्हें पूर्वी राजस्थान में लोग भामाशाह के रूप में पुकारते हैं। रामनिवास मीना ने आमजन की तकलीफों को दूर करने के लिए आर्थिक मदद के साथ जरूरतमंदों को खाद्य सामग्रियों का निशुल्क वितरण, असहायों को आवास, गरीब परिवारों की बेटियों की शादी, निर्धन परिवारों के छात्र-छात्राओं को पढाई की सुविधा के साथ सरकारी स्कूलों में आवश्यक सुविधाओं का विस्तार कराना, वीरांगनाओं का सम्मान, महापुरुषों की मूर्तियों की स्थापना कराना, धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए मंदिरों का निर्माण कराने के साथ धार्मिक कार्यों के सहयोग प्रदान करना, गांवों में बस्तियों के लिए पेयजल और किसानों के लिए सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था करना, रास्ते के अभाव में घरों तक पहुंचने की तकलीफ झेलने वालों को रास्तों का निर्माण कर सुविधा प्रदान करना, पहला सुख निरोगी काया की तर्ज पर आमजन के लिए स्वास्थ्य जांच व परामर्श शिविर आयोजित करने, मोतियाबिंद से पीडित मरीजों के निशुल्क ऑपरेशन कराकर आंखों की रोशनी प्रदान करना, खेल प्रतिभाओं को बढावा देने के लिए खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन कराना जैसे कई सामाजिक सरोकार के कार्य किए हैं, जिनसे हजारों की संख्या में लोग लाभांवित हुए हैं

में रामनिवास मीना से क्षेत्र के किसान बडी संख्या में मिले और सिंचाई व पेयजल की गंभीर होती जा रही समस्या से अवगत कराया। इसके लिए रामनिवास मीना ने राज्य सरकार की प्रस्तावित पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ईआरसीपी) की स्वीकृति को आवश्यक समझा और क्षेत्र के किसानों को साथ लेकर ईआरसीपी की स्वीकृति के लिए जनजागरण में जुट गए। इसके लिए रामनिवास मीना ने सर्वप्रथम राजस्थान और मध्यप्रदेश की सीमा वाले करौली के उपखंड मंडरायल में चंबल नदी पर सैकडों किसानों को ले जाकर चंबल की महाआरती की। इसके साथ 13 जिलों के कलेक्टरों को प्रधानमंत्रीजी के नाम ज्ञापन सौंपे गए। रामनिवास मीना के ही नेतृत्व में प्रधानमंत्रीजी के नाम हस्ताक्षर अभियान भी पूर्वी राजस्थान में चलाया गया। इसके साथ पूर्वी राजस्थान के 13 जिलों में जाकर रामनिवास मीना ने किसान महापंचायतों के माध्यम से न केवल किसानों को जागरूक करने, बल्कि एकजुट करने का कार्य भी प्रमुखता से किया। ईआरसीपी के बारे में आमजन को सहजता से अवगत कराने के लिए लघु फिल्म चंबल की चिट्ठी तैयार कराकर गांव-गांव में आमजन को फिल्म दिखाई गई। इसके साथ महिलाओं की रैलियां और महिला महाकुंभ आयोजित कर चंबल के पानी के लिए महिलाओं को एकजुट किया गया और जलपुरुष राजेन्द्र सिंह व सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे को जोडते हुए आमजन को बडे स्तर पर ईआरसीपी के लिए जागरूक किया गया।
रामनिवास मीना के अथक प्रयासों के चलते मध्यप्रदेश व राजस्थान सरकार के बीच एमओयू होने के साथ केन्द्र सरकार ने ईआरसीपी को स्वीकृति प्रदान की है। रामनिवास मीना की पहचान आज पूर्वी राजस्थान के भामाशाह और पानी वाले बाबा के साथ बडे किसान नेता तथा भाजपा नेता के रूप में स्थापित है।

रामनिवास मीना समाजसेवा के साथ राजनीति के माध्यम से भी आमजन की मदद कर रहे हैं। रामनिवास मीना की धर्मपत्नी श्रीमति प्रेमलता जी बझेडा ग्राम पंचायत की सरपंच रह चुकी हैं, जिन्होंने अपने कार्यकाल में ग्राम पंचायत कोष के अलावा निजी स्तर पर जरूरतमंदों की मदद करने के साथ सडकों के निर्माण, विद्युतीकरण, पेयजल के लिए बोरिंग, सरकारी स्कूल में सभा स्थल आदि के कई प्रमुख कार्य किए हैं, जिनका लाभ ग्रामीणों को मिल रहा है। इनके साथ रामनिवास मीना भी टोडाभीम पंचायत समिति के निर्वाचित सदस्य हैं।
ईआरसीपी
हमारी योजना
भामाशाह रामनिवास मीना कहते हैं कि उनके जीवन का एक ही लक्ष्य है कि पूर्वी राजस्थान के किसान खुशहाल बनें। यही वजह है कि प्रत्येक किसान के घर में खुशियां लाने वाली ईआरसीपी (पी.के.सी.- एकीकृत ईआरसीपी) को स्वीकृत कराने के लिए उन्होंने पूर्वी राजस्थान के गांव-गांव जाकर जनजागरण अभियान के माध्यम से किसानों को एकजुट और ईआरसीपी के प्रति जागरूक करने का कार्य प्रमुखता से किया है।
अब ईआरसीपी की स्वीकृति के बाद आगामी योजना के तहत पार्वती-कालीसिंध-चंबल परियोजना (एकीकृत ईआरसीपी) पर शीघ्र से शीघ्र कार्य प्रारंभ कराना पहली प्राथमिकता रहेगी, ताकि किसानों को इस परियोजना का लाभ शीघ्र से शीघ्र मिलने लगे। नहरों के माध्यम से चंबल का पानी पूर्वी राजस्थान के खेतों तक पहुंचेगा तो निश्चय ही किसानों की आमदनी को दोगुनी होने से कोई नहीं रोक सकेगा। किसानों की यह तरक्की देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के विकसित भारत के लक्ष्य को पूरा करने में अहम भूमिका निभाएगी।
भामाशाह रामनिवास मीना कहते हैं कि एकीकृत ईआरसीपी की सफलता के बाद भी पूर्वी राजस्थान में कभी जलसंकट पैदा नहीं हो, इसके लिए चंबल नदी की तरह यमुना नदी का भी पानी पूर्वी राजस्थान के जिलों भरतपुर, दौसा, करौली, अलवर और सवाईमाधोपुर तक नहरों के माध्यम से पहुंचाने की योजना को साकार किया जाएगा।
हमारा विशेष कार्य
किसान परिवार में जन्मे भामाशाह रामनिवास मीना किसानों के लिए पूरी तरह समर्पित हैं। वैसे तो पानी सभी के जीवन का मूल आधार है, लेकिन किसान के लिए पानी एक अमूल्य धरोहर है। यही कारण है कि किसानों को चंबल का पानी उपलब्ध कराने के लिए रामनिवास मीना ने जयपुर से दिल्ली तक की सरकारों तक किसानों की पीडा पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोडी। करौली जिले के मंडरायल के पास मध्यप्रदेश और राजस्थान की सीमा में बहने वाली चंबल नदी का पानी ले जाकर लोकसभा के माननीय अध्यक्ष श्री ओम बिडला जी तक पहुंचाने की बात हो, या फिर देश के जलशक्ति मंत्री श्री गजेन्द्र सिंह शेखावत को नई दिल्ली जाकर चंबल का पानी भेंटकर ईआरसीपी की प्रमुखता से मांग करना हो, इसमें रामनिवास मीना ने कतई संकोच नहीं किया और पूर्वी राजस्थान के किसानों की प्रमुख मांग से अवगत कराया। ईआरसीपी के लिएजलपुरूष श्री राजेन्द्र सिंह जी का समर्थन प्राप्त करने के साथ आधुनिक भारत के गांधी, ग्राम स्वराज के प्रणेता श्री अन्ना हजारे जी को पूर्वी राजस्थान की धरा पर पहली बार लाकर पानी वाले बाबा भामाशाह रामनिवास मीना ने साबित किया कि वे किसानों की पीडा को दूर करने में कोई भी कदम उठाने में पीछे नहीं रहेंगे।
पूर्वी राजस्थान के किसानों को जलसंकट से उबारने के साथ किसानों को सस्ते दामों में खाद-बीज उपलब्ध कराना, किसानों को साहूकारों और बैंकिंग कर्ज के जंजाल से मुक्त कराना, किसानों के बच्चों को उच्च शिक्षित बनाना भामाशाह रामनिवास मीना के संकल्प का अहम बिन्दू है। इसके साथ धर्म और संस्कृति के प्रसार में सहायक बनने के साथ पहला सुख निरोगी काया को सार्थक बनाने के लिए हर जरूरतमंद को बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराना भी विशेष कार्यों में प्रमुखता से शामिल हैं।
हमारा नज़रिया
भामाशाह रामनिवास मीना मानते हैं कि देश से मुफ्त की रेबडियां बांटने का प्रचलन बंद होना चाहिए। इससे लाभांवित व्यक्ति को भले ही तात्कालिक राहत मिल जाती है, लेकिन यह प्रक्रिया देश की मजबूती में सहायक नहीं बन पाती। ऐसे में आवश्यक है कि आमजन की आवश्यकताओं की पूर्ती करने के लिए बुनियादी ढांचे को मजबूत किया जाए। किसानों का जलसंकट दूर कर उन्हें उन्नत फसलों की पैदावार करने के लिए प्रेरित करना इसी मजबूत बुनियादी ढांचे का एक प्रमुख अंग है। इसी प्रकार स्वास्थ्य और शिक्षा से जुडी योजनाओं पर भी कार्य करने की बडी आवश्यकता है। युवाओं को रोजगार के साथ मानसिक दृष्टि से इस प्रकार तैयार किया जाए कि वे आगे आकरमजबूत राष्ट्र निर्माण में अपनी बडी भूमिका निभा सकें। इसी प्रकार महिलाओं को भी पूर्ण सुरक्षित वातावरण उपलब्ध कराते हुए आत्मनिर्भर बनाने की बडी पहल करने की अत्यंत जरूरत है। इसी से देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी का विकसित भारत का संकल्प साकार हो सकेगा।
मजबूत राष्ट्र निर्माण में अपनी बडी भूमिका निभा सकें। इसी प्रकार महिलाओं को भी पूर्ण सुरक्षित वातावरण उपलब्ध कराते हुए आत्मनिर्भर बनाने की बडी पहल करने की अत्यंत जरूरत है। इसी से देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी का विकसित भारत का संकल्प साकार हो सकेगा।
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